शनिवार, 7 जून 2025


आज मन के कोटरों में 

आज मन के कोटरों में 

फिर छुपा लो प्यार को तुम 

आज मन के कोटरों में 

फिर छुपा लो यार को तुम


आज मन के कोटरों में 

कौन सी चिड़िया छुपी है 

चहचहा लेने उसे दो 

मुक्त कर दो प्यार से तुम 


कैद कब तक कोटरों में 

प्यार को तुम रख सकोगे

छोड़ दो जाने उसे दो 

देखने संसार दो तुम 


और क्या क्या कोटरों में 

छुपा कर तुमने रखा है 

क्या कहा? कुछ भी नहीं तो 

कुछ अधूरी चिट्ठियाँ हैं

कागजों के चंद टुकड़े 

डिब्बियों में बंद सपने 

कुछ दिये टूटे हुए हैं

काँच की कुछ चूड़ियाँ हैं 

कुछ पुराने पेन धरे हैं 

जिनकी निब टूटी हुई है

रोशनाई खतम सी है

इक पुरानी इंच पटरी 

इक सिरा टूटा हुआ है 

इक पुरानी डायरी भी 

दिख रही है सामने ही 

क्या लिखा था डायरी में?

क्यों छुपा इसको रहे हो?

कुछ नहीं, कुछ भी नहीं तो 

बस वही कुछ नाम ही हैं 

मित्र गण के, परिचितों के 

एक तरफा प्रियतमों के 

चंद सिक्के भी रखे हैं 

जिनकी कुछ कीमत नहीं है 

तार भी हैं 

बिजलियों के 

और सूखे सेल रखे हैं 

इक पुराना बल्ब भी है 

रोशनी जिसमें नहीं है 


बंद कर दो मन के कोटर 

सील कर दो मन के कोटर 

लगा दो इक बड़ा ताला 

चाभियों को फेंक डालो 

धूल की इक परत डालो 

मिल न पाए फिर किसी को 

ये तुम्हारे मन के कोटर 


(आज सुबह टहलते समय एक्सेलिया स्कूल के पास एक पेड़ के तने में एक गहरा कोटर दिखा तो ये लाइनें लिख डालीं, उल्टी-सीधी)

आज मन के कोटरों में   आज मन के कोटरों में  फिर छुपा लो प्यार को तुम  आज मन के कोटरों में  फिर छुपा लो यार को तुम आज मन के कोटरों में   कौन स...