आज मन के कोटरों में
आज मन के कोटरों में
फिर छुपा लो प्यार को तुम
आज मन के कोटरों में
फिर छुपा लो यार को तुम
आज मन के कोटरों में
कौन सी चिड़िया छुपी है
चहचहा लेने उसे दो
मुक्त कर दो प्यार से तुम
कैद कब तक कोटरों में
प्यार को तुम रख सकोगे
छोड़ दो जाने उसे दो
देखने संसार दो तुम
और क्या क्या कोटरों में
छुपा कर तुमने रखा है
क्या कहा? कुछ भी नहीं तो
कुछ अधूरी चिट्ठियाँ हैं
कागजों के चंद टुकड़े
डिब्बियों में बंद सपने
कुछ दिये टूटे हुए हैं
काँच की कुछ चूड़ियाँ हैं
कुछ पुराने पेन धरे हैं
जिनकी निब टूटी हुई है
रोशनाई खतम सी है
इक पुरानी इंच पटरी
इक सिरा टूटा हुआ है
इक पुरानी डायरी भी
दिख रही है सामने ही
क्या लिखा था डायरी में?
क्यों छुपा इसको रहे हो?
कुछ नहीं, कुछ भी नहीं तो
बस वही कुछ नाम ही हैं
मित्र गण के, परिचितों के
एक तरफा प्रियतमों के
चंद सिक्के भी रखे हैं
जिनकी कुछ कीमत नहीं है
तार भी हैं
बिजलियों के
और सूखे सेल रखे हैं
इक पुराना बल्ब भी है
रोशनी जिसमें नहीं है
बंद कर दो मन के कोटर
सील कर दो मन के कोटर
लगा दो इक बड़ा ताला
चाभियों को फेंक डालो
धूल की इक परत डालो
मिल न पाए फिर किसी को
ये तुम्हारे मन के कोटर
(आज सुबह टहलते समय एक्सेलिया स्कूल के पास एक पेड़ के तने में एक गहरा कोटर दिखा तो ये लाइनें लिख डालीं, उल्टी-सीधी)